संयुक्‍त राष्‍ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश का 19वाँ दरबारी सेठ स्‍मारक व्‍याख्‍यान “अक्षय ऊर्जा का उदयः सतत् भविष्य की प्रकाशमान राह”
28 August 2020
मेरा सौभाग्‍य है कि मुझे 19वां दरबारी सेठ स्‍मारक व्‍याख्‍यान देने का अवसर मिला है। दरबारी सेठ जलवायु कार्रवाई की दिशा में प्रणेता…

मेरा सौभाग्य है कि मुझे 19वां दरबारी सेठ स्मारक व्याख्यान देने का अवसर मिला है। दरबारी सेठ जलवायु कार्रवाई की दिशा में प्रणेता थे।
उनका आग्रह था कि भारत को प्रदूषण फैलाने वाले, वित्तीय अनिश्चितता के शिकार महंगे जीवाश्म इंधनों पर अपनी निर्भरता समाप्त करनी होगी और उसके बजाय स्वच्छ, आर्थिक रूप से सुदृढ़ सौर ऊर्जा में निवेश करना होगा। आज जब हम कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन के दोहरे संकट से जूझ रहे हैं तब इस प्रयास के लिए इससे अधिक महत्वपूर्ण क्षण नहीं हो सकता। विश्व-भर में इस महामारी ने व्यवस्था संबंधी उन कमजोरियों और असमानताओं को उजागर कर दिया है जो सतत विकास की बुनियाद पर चोट
करती हैं। विश्व का तेज़ी से बढ़ता तापमान और अधिक विघ्नों और विश्व में बहुत गहरे एवं विनाशकारी असंतुलनों को और अधिक उजागर कर रहा है। आज के युवा जलवायु रक्षक कार्यकर्ता यह बात समझते हैं।
वे जलवायु न्याय का अर्थ समझते हैं। वे जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन की सबसे अधिक मार झोल रहे देशों का योगदान उसमें सबसे कम है। आज जब हम कोविड महामारी से उबरने के लिए प्रयासरत हैं तो हमें बेहतर प्रदर्शन का संकल्प लेना होगा। इसका सीधा सा अर्थ है हमारे आर्थिक, ऊर्जा और स्वास्थ्य तंत्रों में आमूल परिवर्तन करना होगा जिससे जीवन की रक्षा हो, स्थिर व समावेशी अर्थव्यवस्थाओं की रचना हो सके और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न अस्तित्व के संकट से बचा जा सके। आज मैं आपको बताना चाहता हूं कि इस स्वप्न को कैसे साकार किया जाए और इस महत्वपूर्ण प्रयास में भारत की क्या भूमिका है।
देवियों और सज्जनों भारत के पास देश और विदेश को नेतृत्व प्रदान करने की सभी क्षमताएं मौजूद हैं
जिसकी संकल्पना दरबारी सेठ ने की थी।
इस दिशा में गरीबी उन्मूलन और सबके लिए ऊर्जा सुलभता मुख्य संचालक हैं
और यह दोनों ही भारत की प्रधान प्राथमिकताएं हैं।
स्वच्छ ऊर्जा, विशेषकर, सौर ऊर्जा का उत्पादन और उपभोग बढ़ाने से इन
दोनों समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
महामारी से उबरने के दौर में अक्षय ऊर्जा, स्वच्छ परिवहन और ऊर्जा के
कुशलता से उपयोग में निवेश करने से दुनिया भर में 27 करोड़ लोगों को बिजली
सुलभ कराई जा सकती है। यह संख्या इस समय बिजली की सुविधा से वंचित
विश्व की कुल आबादी की एक-तिहाई है।
यही निवेश अगले तीन वर्ष में प्रतिवर्ष 90 लाख रोज़गार प्रदान करने में मदद कर
सकता है।
अक्षय ऊर्जा में निवेश करने से प्रदूषण फैलाने वाले जीवाश्म ईंधन में किए गए
निवेश की तुलना में रोज़गार के तीन गुना अवसर उत्पन्न होते हैं।
आज जब कोविड-19 महामारी के कारण अनेक लोगों के लिए वापस गरीबी के
जाल में धकेले जाने का खतरा उत्पन्न हो रहा है तो इस तरह रोज़गार के
अवसर उत्पन्न करने का मौका गंवाया नहीं जा सकता।
भारत इस दिशा में पहले से आगे बढ़ रहा है।
2015 से भारत में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या 5 गुना बढ़ी
है।
पिछले वर्ष पहली बार सौर ऊर्जा पर खर्च की मात्रा कोयले से उत्पन्न ऊर्जा पर
खर्च से अधिक रही।
भारत ने बिजली सर्वसुलभ कराने की दिशा में भी उल्लेखनीय प्रगति की है।
किन्तु, बिजली की सुलभता दर 95 प्रतिशत होने के बावजूद आज भी 6 करोड़ 40
लाख भारतीयों को बिजली नसीब नहीं हैं।
अभी बहुत काम करना है और अवसरों का लाभ उठाना है।
सम्मानित जन
स्वच्छ ऊर्जा और ऊर्जा सुलभता की खाई को पाटना समझदारी का कारोबार है।
यह दोनों ही वृद्धि और सम्पन्नता के द्वार हैं।
इसके बावजूद भारत में जीवाश्म ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी की मात्रा
स्वच्छ ऊर्जा को मिल रही सब्सिडी की तुलना में करीब 7 गुना अधिक है।
विश्व भर में अनेक देशों में जीवाश्म ईंधन के लिए समर्थन जारी रहना बहुत
अधिक चिंताजनक है।
मैंने भारत सहित सभी जी-20 देशों से आग्रह किया है कि कोविड-19 महामारी से
उबरते समय वे स्वच्छ और पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा में निवेश करें।
इसका सीधा सा अर्थ है कि जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी समाप्त की जाए, कार्बन
प्रदूषण पर शुल्क लगाया जाए और 2020 के बाद किसी नए कोयला बिजली घर
को मंज़ूरी न दी जाए।
कोविड-19 से निपटने के लिए अपनी घरेलू उत्प्रेरक एवं निवेश योजनाओं में
कोरिया गणराज्य, युनाइटिड किंग्डम और जर्मनी जैसे देशों तथा यूरोपीय संघ ने
अपनी अर्थव्यवस्थाओं को कार्बन उत्सर्जन मुक्त करने की दिशा में प्रयास
तेज़ किए हैं।
वे जीवाश्म ईंधन की बजाय स्वच्छ और कुशल ऊर्जा स्रोतों को अपना रहे हैं
और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे ऊर्जा भंडारण समाधानों में निवेश कर रहे हैं।
और सिर्फ विकसित देश ही इस दिशा में तेज़ी से आगे नहीं बढ़ रहे हैं।
अनेक विकासशील देश भी मिसाल पेश कर रहे हैं, जैसे नाइजीरिया ने हाल ही में
अपनी जीवाश्म ईंधन सब्सिडी नीति में फेरबदल किया है।
इन अनुकूल संकेतों से जहां मैं उत्साहित हूं वहीं अनेक प्रतिकूल संकेत मेरी चिंता
बढ़ा रहे हैं।
जी-20 देशों में तैयार संकट मोचक योजनाओं के अध्ययन से पता चला है कि
उसमें से दोगुनी राशि स्वच्छ ऊर्जा की बजाय जीवाश्म ईंधन पर खर्च की जा
रही है।
कुछ देशों में तो घरेलू कोयला उत्पादन दोगुना करने और कोयले की नीलामी
खोलने के प्रयास हो रहे हैं।
इस नीति को अपानाने से आर्थिक संकुचन बढ़ेगा और स्वास्थ्य पर विनाशकारी
प्रभाव पड़ेगा।
अब से पहले हमारे पास इतने अधिक प्रमाण कभी नहीं थे कि जीवाश्म ईंधन
प्रदूषण और कोयले से होने वाला उत्सर्जन मानव स्वास्थ्य को भारी क्षति
पहुंचाता है जिसके कारण स्वास्थ्य सेवा तंत्र की लागत बहुत अधिक बढ़ जाती
है।
खुले स्थानों पर वायु प्रदूषण, बहुत हद तक, अत्यधिक उत्सर्जक ऊर्जा एवं
परिवहन स्रोतों से फैलता है जिसके कारण दमा, निमोनिया, और फेफड़े के कैंसर
जैसी फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाली बीमारियां पैदा होती हैं।
इस वर्ष अमेरिका में शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि जिन क्षेत्रों में वायु
प्रदूषण का स्तर ऊंचा है वहां के निवासियों में कोविड-19 से मृत्यु की आशंका
अधिक है।
यदि जीवश्म ईंधन उत्सर्जन से छुटकारा पा लिया जाए तो औसत आयु कुल
मिलाकर 20 महीने से अधिक बढ़ सकती है। यानी दुनियाभर में प्रतिवर्ष 55 लाख
मौतों को टाला जा सकता है।
जीवाश्म ईंधन में निवेश का अर्थ है अधिक मौतें, अधिक रोग और स्वास्थ्य
सेवा की बढ़ती लागत।
सीधे शब्दों में कहें तो यह एक मानवीय त्रासदी और बुरी आर्थिक नीति है।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि अक्षय ऊर्जा की लागत इतनी गिर गई है कि
दुनिया में मौजूद 39 प्रतिशत कोयला बिजलीघर चलाते रहने की बजाय अक्षय
ऊर्जा की नई उत्पादन क्षमता स्थापित करना अधिक सस्ता हो गया है।
2022 तक स्पर्धा लेने में अक्षम कोयला बिजली घरों का यह अनुपात तेज़ी से
बढ़कर 60 प्रतिशत हो जाएगा।
भारत में 50 प्रतिशत कोयला ऊर्जा 2022 में अक्षय ऊर्जा से टक्कर नहीं ले
सकेगी और 2025 तक यह अनुपात 85 प्रतिशत हो जाएगा।
इसलिए विश्व के सबसे बड़े निवेशक कोयले में निवेश छोड़ते जा रहे हैं।
वे भविष्य की इबारत साफ देख रहे हैं।
इसका सीधा सा अर्थ है अनुउत्पादक परिसंपत्तियां और इसमें कोई कारोबारी
समझदारी नहीं है।
कोयले का कारोबार अब धुआं होता जा रहा है।
सम्मानित जन
देवियों और सज्जनों
भारत के अक्षय ऊर्जा संसाधनों के लाभ साफ दिखाई दे रहे हैं।
उनकी लागत कम है, जिंस बाज़ार के उतार-चढ़ाव से अछूते हैं और जीवाश्म ईंधन
बिजली घरों की तुलना में रोज़गार क्षमता तीन गुना अधिक है।
और हमारे दम घोंटू शहरों की हवा को स्वच्छ कर सकते हैं।
अपने विशाल आकार और विविध पारिस्थितिकी के कारण भारत जलवायु परिवर्तन
के अनेक सबसे भीषण प्रहार झेल रहा है।
बाढ़ और सूखे का प्रकोप अधिक जल्दी-जल्दी और गंभीर हो रहा है जिसके
कारण आहार तंत्र, स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं एवं मानव स्वास्थ्य को भीषण
क्षति पहु्ंच रही है।
भारत में हाल में आई बाढ़ ने लाखों लोगों के जीवन में तबाही मचा दी है।
जलवायु परिवर्तन सबसे कमज़ोर वर्गों पर सबसे कठोर वार करता है जिसके कारण
भारत जैसे देशों में लाखों लोगों को गरीबी से मुक्ति दिलाने में हुई उल्लेखनीय
प्रगति खतरे में पड़ जाती है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी समिति ने पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री के
लक्ष्य पर जो विशेष रिपोर्ट तैयार की है उससे पता चलता है कि अगर तापमान
की यह सीमा लांघी गई तो जलवायु संकट की आंच भारत को और सताएगी।
देश में ग्रीष्मलहर, बाढ़ और सूखे का प्रकोप और भीषण होगा, जल संकट बढ़ेगा
और अनाज उत्पादन घटेगा जिनके कारण सतत् विकास लक्ष्यों की दिशा में हुई
प्रगति को क्षति पहुंचेगी।
हमारी चुनौती तात्कालिक और स्पष्ट है।
तापमान वृद्धि को 1.5 तक सीमित रखने के लिए ज़रूरी है कि 2030 तक
वैश्विक उत्सर्जन आधा किया जाए और 2050 से पहले विश्व कार्बन उत्सर्जन
मुक्त हो जाए।
यह लक्ष्य अब भी हासिल किए जा सकते हैं।
किंतु आज विश्व एक नाज़ुक दोराहे पर खड़ा है।
सरकारें जब कोविड-19 महामारी से उबरने के लिए खरबों डॉलर जुटाने में लगी हैं
तब वे जो फैसले लेंगी जलवायु पर उनका असर दशकों तक रहेगा।
इस समय चुने गए विकल्प या तो जलवायु कार्रवाई को आगे की दिशा में ले
जाएंगे या हमे वर्षों पीछे धकेल देंगे और विज्ञान कहता है कि हम पीछे जाने का
जोखिम मोल नहीं ले सकते।
इसलिए मैंने सरकारों से आग्रह किया है कि वे महामारी से अधिक बेहतर ढंग से
उबरने के लिए जलवायु अनुकूल छह कदम उठाएं।
पर्यावरण अनुकूल रोज़गार में निवेश करें।
प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को संकट से न उबारें।
जीवाश्म ईंधन सब्सिडी समाप्त करें।
सभी वित्तीय और नीतिगत निर्णयों में जलवायु जोखिमों को शामिल रखें।
मिलकर काम करें।
सबसे महत्वपूर्ण कदम यह है कि किसी को पीछे न छोड़ें।
सभी देशों की तरह भारत भी दोराहे पर खड़ा है।
किंतु अपनी जनसंख्या को सम्पन्नता का लाभ देने में उल्लेखनीय चुनौतियों
के बावजूद भारत ने कई प्रकार से स्वच्छ टैक्नॉलॉजी और टिकाऊ ऊर्जावान
भविष्य को अपनाया है।
मैं एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड के रूप में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन को आगे
बढ़ाने के भारत के फैसले का स्वागत करता हूं।
और विश्व सौर बैंक की स्थापना के लिए भारत के इरादों की सराहना करता हूं
जो आने वाले दशक में सौर परियोजनाओं में दस खरब अमेरिकी डॉलर का निवेश
जुटाएगा।
भारत में सौर ऊर्जा की 37 गीगावॉट स्थापित क्षमता मौजूद है।
और अभी तो यह शुरूआत है।
मुझे भारत सरकार के इस निर्णय से प्रेरणा मिली है कि वह अक्षय ऊर्जा क्षमता
को 2015 के 175 गीगावॉट के प्रारंभिक लक्ष्य से बढ़ाकर 2030 तक 500
गीगावॉट करेगी।
मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह निर्णय केस डी डेपो एट प्लेसमेंट ड्यू
क्यूबेक (Caisse de depot et placement du quebec) या अबू धाबी
इंवेस्टमेंट अथॉरिटी जैसे सॉवरन वेल्थ फंड और पेंशन फंड जैसे अधिक से
अधिक अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को आकर्षित करेगा।
जहां तक बिजली और स्वच्छ रसोई ईंधन सुलभ कराने के नए-नए तरीके
खोजने का प्रश्न है भारत दुनिया को राह दिखाता है।
मैं भारत और उसके सभी नवन्वेषकों, उद्यमियों और कारोबारी प्रमुखों से आग्रह
करता हूं कि वे परिवार की रसोई में सौर ऊर्जा से चूल्हा जलाने के उपाय की
वैश्विक खोज में अग्रणी भूमिका निभाएं।
भारत सतत् विकास लक्ष्य 7 हासिल करने के प्रयास में कारोबार का बड़ा केंद्र
बन सकता है।
पिछले वर्ष जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मलेन में भारत ने स्वीडन के साथ
मिलकर लीडरशिप ग्रुप फॉर इंडस्ट्री ट्रांज़ीशन का शुभारंभ किया था।
सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के प्रमुख सम्बद्ध पक्षों की इस भागीदारी का संकल्प
है कि इस शताब्दी के मध्य तक उन क्षेत्रों में पूरी तरह शून्य उत्सर्जन का
लक्ष्य हासिल किया जाए जो सामूहिक रूप से 30 प्रतिशत वैश्विक उत्सर्जन के
लिए जिम्मेदार हैं।
डालमिया सीमेंट और महिंद्रा जैसी कंपनियां नवोन्मेष में अग्रणी हैं।
किंतु और अधिक कंपनियों को इस प्रयास से जोड़ने की आवश्यकता है।
भारत जलवायु परिवर्तन से संघर्ष में सच्चे अर्थों में वैश्विक महाशक्ति बन
सकता है, बशर्ते, वह जीवाश्म ईंधन की जगह अक्षय ऊर्जा को अपनाने की गति
तेज़ करे।
मुझे यह जानकर प्रेरणा मिली की महामारी के दौरान भारत में अक्षय ऊर्जा का
अनुपात 17 से बढ़कर 24 प्रतिशत हो गया जबकि कोयले से उत्पन्न ऊर्जा का
अनुपात 76 प्रतिशत से घटकर 66 प्रतिशत रह गया।
यह उत्साहजनक रूझान जारी रखने की आवश्यकता है।
अक्षय ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना होगा।
और कोयले का उपयोग धीरे-धीरे समाप्त करना होगा।
यह होनी चाहिए हमारी कहानी!
21वीं शताब्दी के लिए अधिक स्मार्ट, अधिक सशक्त, अधिक स्वच्छ
अर्थव्यवस्थाओं की कहानी जिसमें अधिक रोज़गार, अधिक न्याय और अधिक
सम्पन्नता का बोलबाला हो।
यह ऐसी कहानी है जिसे उद्यमी और नवोन्मेषक भारत ही नहीं दुनियाभर में
सुना रहे हैं।
मैं सभी देशों, विशेषकर जी-20 देशों, से आग्रह करता रहूंगा कि वे 2050 से पहले
कार्बन उत्सर्जन मुक्ति का संकल्प लें और सीओपी-26 से बहुत पहले राष्ट्रीय
स्तर पर निर्धारित अधिक आकांक्षी योगदान और दीर्घकालिक रणनीति की
रूपरेखा प्रस्तुत करें जो 1.5 डिग्री के लक्ष्य के अनुरूप हों।
मैं भारत के नेताओं से आग्रह करता हूं कि वे इस निर्णायक यात्रा को जारी रखने
के लिए आवश्यक निर्णय लें, निवेश करें और नीतियां अपनाएं।
अब समय आ गया है कि स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु कार्रवाई के लिए साहसी
नेतृत्व दिखाया जाए।
मैं भारत से आग्रह करता हूं कि वह उस आकांक्षी नेतृत्व की बागडोर संभाले
जिसकी हमें आवश्यकता है।
महामारी और जलवायु संकट दोनों ने इस बारे में बुनियादी प्रश्न उठाए हैं कि
विश्व की जनसंख्या को स्वस्थ और निरोगी कैसे रखा जाए और सबकी भलाई
की दिशा में सभी देश कैसे आवश्यक सहयोग करें।
विशेषकर युवा हम सबसे आस लगाए हुए हैं कि हम पीढ़ियों के बीच एकजुटता
रखें और उपायों के टिकाऊपन, बराबरी तथा सामाजिक न्याय की दिशा में साहस
के साथ कदम बढ़ाएं।
संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ के इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर भारत को निर्णायक
भूमिका निभानी है।
धन्यवाद