Press Release

संयुक्त राष्ट्र महासचिव: विश्‍व का भाग्‍य आपके हाथ में है।

12 September 2018

महासचिव: विश्‍व का भाग्‍य आपके हाथ में है। इस चुनौती का सामना करना होगा, इससे पहले की बहुत देर हो जाए।
10 सितंबर को न्‍यूयॉर्क में जलवायु परिवर्तन के बारे में…

[vc_row][vc_column][vc_column_text]

महासचिव: विश्‍व का भाग्‍य आपके हाथ में है। इस चुनौती का सामना करना होगा, इससे पहले की बहुत देर हो जाए।

10 सितंबर को न्‍यूयॉर्क में जलवायु परिवर्तन के बारे में संयुक्‍त राष्‍ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस का वक्‍तव्‍य :

इस पृथ्‍वी ग्रह के प्रिय मित्रों आज संयुक्‍त राष्‍ट्र मुख्‍यालय में आने के लिए आप सबका धन्‍यवाद। मैंने आप सबको यहां खतरे की घंटी सुनाने के लिए बुलाया है।

जलवायु परिवर्तन हमारे दौर का एक निर्णायक मुद्दा है और हम एक निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं। अस्तित्‍व का संकट हमारे सामने मुंह-बाए खड़ा है। जलवायु परिवर्तन हम से कहीं अधिक तेज गति से बढ़ता चला आ रहा है और इसकी गति ने सारी दुनिया में एक "एसओएस" सॉनिक धमाका कर दिया है। यदि हमने 2020 तक अपना रास्‍ता नहीं बदला तो इस बात की बहुत आशंका है कि हम अंधाधुंध बढ़ते जलवायु परिवर्तन से बचने का मौका चूक जाएंगे जिसका दुनिया के निवासियों और हमारा पालन-पोषण करने वाली सभी प्राकृतिक प्रणालियों पर घातक प्रभाव पड़ेगा। इसीलिए आज मैं नेतृत्‍व के लिए अपील कर रहा हूं- राजनेताओं से, कारोबारियों और वैज्ञानिकों से तथा हर जगह की निवासी जनता से। हमारे पास अपनी कार्रवाई को असरदार बनाने के साधन हैं। किन्‍तु पेरिस समझौते के बावजूद हमारे पास अभाव है- नेतृत्‍व का और वह सब करने की महत्‍वाकांक्षा का, जो आवश्‍यक है।

संकट कितना तात्‍कालिक है इस बारे में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। दुनियाभर में तापमान रिकॉर्ड तोड़ रहा ह। विश्‍व मौसम संगठन के अनुसार 1850 में रिकॉर्ड रखे जाने की शुरुआत के समय से  पिछले दो दशकों में 18 सबसे गर्म वर्ष हमने अनुभव किए हैं। यह वर्ष चौथा सबसे गर्म वर्ष होने जा रहा है।

भीषणतम ग्रीष्‍म लहर, जंगल की आग, तूफान और बाढ़, मौत और विनाश का तांडव कर रहे हैं। पिछले माह, भारत के केरल राज्‍य में ताजा इतिहास में मानसून के दौरान आई सबसे विनाशकारी बाढ़ ने चार सौ लोगों की जान ले ली और दस लाख लोगों को घर से बेघर कर दिया। हम जानते हैं कि पिछले वर्ष हरिकेन मारिया ने प्यूर्टोरिको में लगभग तीन हजार लोगों की जान ली थी और यह अमरीका के इतिहास में एक सबसे घातक, विनाशकारी, मौसम आपदा बनकर दर्ज हुआ। इनमें से अनेक मौतें तूफान के गुजर जाने के महीनों बाद हुई क्‍योंकि तूफान की तबाही ने उन्‍हें बिजली, स्‍वच्‍छ पानी और समुचित स्‍वास्‍थ्‍य सेवा से वंचित कर दिया।

स्थिति और भी चिंताजनक इसलिए है कि हमें पहले से सावधान कर दिया गया था। वैज्ञानिक दशकों से हमें बार-बार आगाह करते रहे हैं। बहुत बड़ी संख्‍या में नेताओं ने इस चेतावनी को सुनने से इंकार कर दिया और बहुत गिने-चुने नेताओं ने विज्ञान की कसौटी पर अपेक्षित दूरदृष्टि के साथ कार्रवाई की। परिणाम हमारे सामने हैं। कुछ परिस्थितियों में वैज्ञानिकों की सबसे बुरी आशंकाएं सच होती दिख रही हैं। आर्कटिक सागर का हिम हमारी संभावित कल्‍पना से कहीं अधिक तेजी से गायब हो रहा है।

इस वर्ष पहली बार ग्रीनलैंड के उत्‍तर में सागर के हिम की मोटी स्‍थायी परत टूटने लगी है। आर्कटिक में इस नाटकीय गर्मी का असर समूचे उत्‍तरी गोलार्द्ध में मौसम प्रारूपों पर पड़ रहा है।

जंगल में आग अधिक समय तक रहती है और दूर-दूर तक फैल रही है। इनमें से कुछ की लपटें तो इतनी ऊंची हैं कि दुनिया के अनेक हिस्‍सों तक कालिख और राख उगल रही हैं जिनके कारण हिमनद और हिम शिखर काले पड़ रहे हैं और पहले से अधिक तेज गति से पिघलने लगे हैं।

महासागरों में अम्लीयता बढ़ रही है जिसके कारण जीवन को सहारा देने वाली आहार श्रृंखलाओं की बुनियाद खतरे में है। भारी मात्रा में कोरल मर रहे हैं और मछली भंडार कम होते जा रहे हैं। जमीन पर वातावरण में कार्बन डाइऑक्‍साइड का ऊंचा स्‍तर धान की फसलों की पौष्टिकता घटा रहा है जिससे अरबों लोगों के लिए आरोग्‍य और खाद्य सुरक्षा खतरे में है।

जलवायु परिवर्तन जैसे-जैसे जोर पकड़ता जाएगा हमारे लिए अपना पेट भरना मुश्किल होता जाएगा। महत्‍वपूर्ण पर्यावास के क्षय के कारण विलोपन की दरें बढ़ेंगी। अधिक से अधिक लोग अपने घरों से दूर जाने के लिए मजबूर होंगे क्‍योंकि ये जिस जमीन पर गुजारा करते हैं उसकी सहारा देने की क्षमता कम होती जाएगी। इसके कारण, घटते संसाधनों पर नियंत्रण के लिए अनेक स्‍थानीय संघर्ष भड़कने लगे हैं।

पिछले वर्ष मई में विश्‍व मौसम संगठन ने बताया कि पृथ्‍वी ने एक और विनाशकारी रिकॉर्ड बनाया है। कार्बन डाइऑक्‍साइड का औसत मासिक स्‍तर अब तक सबसे अधिक ऊंचाई पर दर्ज हुआ है। 400 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) अंश प्रति दस लाख) को बहुत समय से एक अंतिम सीमा माना जा रहा था किन्‍तु अब हम 411 पार्ट्स पर मिलियन को पार कर चुके हैं और कार्बन डाइऑक्‍साइड की सघनता बढ़ती जा रही है। 30 लाख वर्ष में ये सबसे अधिक सघनता है।

हम जानते हैं कि हमारी पृथ्‍वी के साथ क्‍या हो रहा है। हम जानते हैं कि हमें क्‍या करना है और हम यह भी जानते हैं कि कैसे करना है, फिर भी दुख की बात यह है कि हमारे कदमों की प्रबलता उस स्‍तर के आस-पास भी नहीं है जहां होनी चाहिए। तीन वर्ष पहले जब विश्‍व नेताओं ने जलवायु परिवर्तन के बारे में पेरिस समझौते पर हस्‍ताक्षर किए थे तो उन्‍होंने शपथ ली थी कि विश्‍व की सतह के तापमान में वृद्धि को औद्योगीकरण के पहले के स्‍तरों से दो डिग्री सेल्सियस से भी कम रखेंगे और इस वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के निकटतम सीमित रखने के प्रयास करेंगे। यह उद्देश्‍य जलवायु परिवर्तन के भीषणतम प्रभाव से बचने के लिए न्‍यूनतम स्‍तर के हैं। किन्‍तु वैज्ञानिकों का कहना है कि हम लक्ष्‍य से बहुत दूर हैं। संयुक्‍त राष्‍ट्र के एक अध्‍ययन के अनुसार पेरिस समझौते से संबद्ध पक्षों ने अब तक जो भी संकल्‍प लिए हैं वे आवश्‍यकता के सिर्फ एक तिहाई हिस्‍से के बराबर हैं।

हमारे सामने चुनौतियों का पहाड़ बहुत ऊंचा है, किन्‍तु अजेय नहीं है। हम जानते हैं कि उसे कैसे फतह करना है। सरल शब्‍दों में कहें कि हमें घातक ग्रीनहाउस गैस उत्‍सर्जन पर लगाम लगानी होगी और जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाना होगा। हमें जीवाष्‍म ईंधन पर अपनी निर्भरता तेजी से कम करनी होगी। उनकी जगह जल, पवन और सूर्य से प्राप्‍त स्‍वच्‍छ ऊर्जा को अपनाना होगा, हमें वनों का कटाव रोकना होगा, नष्‍ट हुए वनों को फिर खड़ा करना होगा और खेती के तरीके बदलने होंगे। हमें चक्रवत अर्थव्‍यवस्‍था एवं संसाधनों के कुशल उपयोग को अपनाना होगा।

हमें शहरों और परिवहन क्षेत्र में आमूल परिवर्तन करना होगा। हम अपने भवनों को कैसे गरम, ठंडा और प्रकाशमान करते हैं, उस पर दोबारा सोचना होगा, ताकि ऊर्जा की बर्बादी कम हो और इसी बिंदु पर यह संवाद उत्‍साहजनक हो सकता है क्‍योंकि जलवायु परिवर्तन पर अधिकतर बातचीत विनाश और दुख के धुंध में लिपटती होती है।

बेशक चेतावनियां आवश्‍यक हैं किन्‍तु भय से काम नहीं बनेगा। इसके विपरीत मेरा ध्‍यान जलवायु कार्रवाई से उपलब्‍ध विशाल अवसरों पर टिका है। यदि हमने जलवायु चुनौती का डटकर मुकाबला किया तो मानव समुदाय को अपार लाभ मिलने वाला है। इनमें से बहुत अधिक लाभ आर्थिक हैं।

मैंने आमतौर पर निहित स्‍वार्थों की ओर से दिया जा रहा यह तर्क सुना है कि जलवायु परिवर्तन से निपटना महंगा है जिससे आर्थिक वृद्धि को नुकसान हो सकता है। यह तर्क निरर्थक है। वास्‍तव में सच्‍चाई इसके विपरीत है। जलवायु परिवर्तन के कारण हमें भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ेगी। पिछले दशक में जीवाष्‍म ईंधन जलाने के कारण मौसम और स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़े विनाशकारी प्रभाव की कीमत अमरीकी अर्थव्‍यवस्‍था को कम से कम 240 अरब डॉलर वार्षिक के रूप में चुकानी पड़ेगी। आगामी एक दशक के भीतर ही यह लागत 50 प्रतिशत और बढ़ने वाली है। गरम होते जलवायु के कारण उत्‍पादकता घटने से 2030 तक विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था को 20 खरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान होने की आशंका है।

अनेकानेक अध्‍ययन भी जलवायु कार्रवाई के असाधारण लाभों की ओर संकेत कर रहे हैं। पिछले सप्‍ताह मेरी उपस्थिति में वैश्विक, आर्थिक एवं जलवायु परिवर्तन आयोग की नई जलवायु अर्थव्‍यवस्‍था रिपोर्ट जारी की गई। उसमें बताया गया है कि जलवायु कार्रवाई और सामाजिक-आर्थिक प्रगति परस्‍पर समर्थनकारी हैं। इसमें अब तक के तौर-तरीकों की तुलना में 2030 तक 260 खरब अमेरिकी डॉलर के लाभ की बात कही गई है। बशर्ते हम सही रास्‍ता अपनाएं।

उदाहरण के लिए नष्‍ट हुए वनों को फिर से खड़ा करने पर खर्च होने वाले हर डॉलर के बदले आर्थिक लाभ और गरीबी में कमी के रूप में 30 डॉलर तक वापस कमाए जा सकते हैं। नष्‍ट हुई जमीन को फिर से उपजाऊ बनाने का अर्थ किसानों और मवेशी चराने वालों के लिए बेहतर जीवन और बेहतर आय है। इससे शहरों के लिए प्रवासन का दबाव भी कम होगा। जलवायु परिवर्तन को सहने में सक्षम जलापूर्ति और स्‍वच्‍छता सुविधाओं से हर वर्ष 3,60,000 से अधिक शिशुओं का जीवन बचाया जा सकता है और स्‍वच्‍छ हवा जन स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अत्‍यधिक लाभकारी है पर अंतर्राष्‍ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार समझदार, पर्यावरण अनुकूल आर्थिक नीतियां, 2030 तक दुनिया भर में 2.4 करोड़ नए रोजगार पैदा कर सकती हैं। चीन और अमेरिका में नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़े नए रोजगार, तेल एवं गैस उद्योगों में पैदा हुए रोजगार से कहीं अधिक हैं। बांग्‍लादेश में घरों में लगाई गई 40,00,000 से अधिक सौर प्रणालियों ने 1,15,000 से अधिक रोजगार पैदा किए और ग्रामीण परिवारों के लिए प्रदूषणकारी ईंधन पर खर्च होने वाली 40 करोड़ डॉलर से अधिक की रकम की बचत हुई। इससे साबित होता है कि नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने से न सिर्फ धन की बचत होगी, बल्कि नए रोजगार पैदा होंगे, पानी की बर्बादी कम होगी, खाद्य उत्‍पादन बढ़ेगा और जानलेवा प्रदूषित वायु स्‍वच्‍छ हो सकेगी। इस दिशा में कदम उठाने से कोई हानि नहीं होगी, बस लाभ ही लाभ मिलेगा।

अब भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि चुनौती बहुत गंभीर है। किन्‍तु मैं उनसे बिल्‍कुल सहमत नहीं हूं। मानव समुदाय इससे पहले भीषण चुनौतियों का सामना करके उन पर विजय पा चुका है। इन चुनौतियों के लिए आवश्‍यक था कि हम मिलकर काम करें और एक ताजे खतरे से लड़ने के लिए आपसी मतभेदों और विभाजन की दीवारें गिरा दें। संयुक्‍त राष्‍ट्र ने इसी तरह काम करना शुरू किया। इसी तरह हमने युद्ध समाप्‍त कराने, बीमारियों पर लगाम लगाने, वैश्विक गरीबी कम करने और ओजोन छिद्र को भरने में मदद की है।

अब हम अपने अस्तित्‍व के चौराहे पर खड़े हैं। यदि हमें सही रास्‍ता चुनना है जो एक मात्र समझदार रास्‍ता भी है तो हमें मानव मेधा की पूर्ण शक्ति को जागृत करना होगा। यह मेधा पहले से मौजूद है और समाधान दे रही है।

एक और प्रमुख संदेश यह है कि जलवायु परिवर्तन के संघर्ष में टैक्‍नॉलॉजी हमारे साथ खड़ी है। नवीकरणीय ऊर्जा का उदय असाधारण रहा है। आज यह कोयले और तेल से टक्‍कर ले रही है या उससे भी सस्‍ती है, यदि उसमें प्रदूषण की लागत भी जोड़ ली जाए।

पिछले वर्ष चीन ने नवीकरणीय ऊर्जा में 126 अरब डॉलर का निवेश किया, जो उससे पिछले वर्ष की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक है। स्‍वीडन नवीकरणीय ऊर्जा के लिए 2030 का अपना लक्ष्‍य 12 वर्ष पहले यानी इसी वर्ष हासिल करने वाला है। 2030 तक एक-तिहाई से अधिक यूरोप पवन और सौर ऊर्जा का उपयोग करने लगेगा। मोरक्‍को पेरिस के आकार जितना बड़ा सौर ऊर्जा फार्म बना रहा है जो 2020 तक 10 लाख से अधिक मकानों को स्‍वच्‍छ एवं किफायती ऊर्जा देने लगेगा। स्‍कॉटलैंड ने विश्‍व का पहला तैरता हुआ पवन ऊर्जा फार्म शुरू किया है।

आशा जगाने वाले अनेक अन्‍य संकेत भी हैं। खाड़ी देशों और नार्वे जैसे जीवाष्‍म ईंधन से भरपूर देश अपनी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में विविधता लाने के उपाय तलाश रहे हैं। सऊदी अरब, नवीकरणीय ऊर्जा में भारी निवेश कर रहा है ताकि तेल आधारित अर्थव्‍यवस्‍था से ऊर्जा संचालित अर्थव्‍यवस्‍था बन सके। नार्वे में 10 खरब डॉलर की सरकारी सम्‍पदा निधि विश्‍व में सबसे बड़ी है। उसने कोयले में निवेश कम कर दिया है और पॉम तथा लुग्दी से कागज बनाने वाली अनेक कंपनियों से हाथ खींच लिया है क्‍योंकि उनके कारण वनों का विनाश होता है।

कारोबारी, जलवायु कार्रवाई के लाभों के प्रति सचेत होने लगे हैं। यह भी एक आशाजनक संकेत है। विश्‍व के 130 से अधिक विशालतम और सबसे प्रभावशाली कारोबारी कंपनियां अपने परिचालनों में शत-प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करने वाली हैं। 18 बहुराष्‍ट्रीय कंपनियां विद्युत वाहन अपनाने वाली हैं और 400 से अधिक कंपनियां अपने उत्‍सर्जन को नियंत्रित करने के लिए नवीनतम वैज्ञानिक विधियों पर आधारित लक्ष्‍य विकसित करेंगी। दुनिया की एक सबसे बड़ी बीमा कंपनी आलियांज अब कोयले से चलने वाले बिजलीघरों का बीमा नहीं करेगी।

निवेश भी विकल्‍प बदल रहा है। 280 खरब डॉलर की परिसंपत्तियों वाले 250 से अधिक निवेशकों ने जलवायु कार्रवाई 100 + पहल पर हस्‍ताक्षर किए हैं। उन्‍होंने दुनिया में सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्‍सर्जन करने  वाली कंपनियों के साथ अनुबंध का वायदा किया है जिससे उनका जलवायु प्रदर्शन सुधर सके और उत्‍सर्जनों के बारे में पारदर्शी जानकारी मिल सके।

इस सप्‍ताह कैलीर्फोनिया में गवर्नर जैरी ब्राउन ने जो महत्‍वपूर्ण ग्‍लोबल क्‍लाइमेट एक्‍शन समि‍ट आयोजित किया है उसमें ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलेंगे। मैंने जिन प्रणेताओं का उल्‍लेख किया है उन सबने भविष्‍य को देख लिया है। वे पर्यावरण अनुकूल सौदों पर दाँव लगा रहे हैं क्‍योंकि वे समझ गए हैं कि शत-प्रतिशत संपन्‍नता और शांति का यही मार्ग है। इसका विकल्‍प एक अंधेरा और खतरनाक भविष्‍य है।

ये सभी प्रयास महत्‍वपूर्ण हैं किन्‍तु पर्याप्‍त नहीं हैं। पहले से अधिक स्वच्‍छ और पर्यावरण अनुकूल भविष्‍य की तरफ प्रयाण की गति तेज करनी होगी। आज हमारे सामने वास्‍तव में ''अपनाओ या गंवा दो'' की घड़ी आ गई है। अगले एक दशक या उससे कुछ अधिक समय में दुनिया, बुनियादी सुविधाओं में करीब 900 खरब डॉलर का निवेश करने वाली है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि ये बुनियादी सुविधाएं संवहनीय हों अन्‍यथा हम अधिक प्रदूषणकारी हानिकारक भविष्‍य को निमंत्रण देंगे। ऐसा तभी होगा, जब विश्‍व के नेता तेजी से आगे बढ़ेंगे। इसमें संदेह नहीं कि निजी क्षेत्र आगे बढ़ने को तैयार खड़ा है और उनमें से अनेक इस दिशा में काम कर रहे हैं। किन्‍तु सरकारी स्‍तर पर निर्णायक कार्रवाई का अभाव बाजारों में अनिश्चितता और पेरिस समझौते के भविष्‍य के प्रति चिंताएं पैदा कर रहा है। हम ऐसा होने नहीं दे सकते। मौजूदा टैक्‍नॉलॉजी ऑनलाइन होने की प्रतीक्षा में है- पहले से अधिक स्‍वच्‍छ ईंधन, वैकल्पिक भवन सामग्री, बेहतर बैटरी और खेती तथा भूमि के उपयोग के तरीकों में उन्‍नति। ऐसे और अन्‍य नए प्रयासों की ग्रीनहाउस गैस उत्‍सर्जन कम करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इस तरह हम पेरिस के लक्ष्‍यों को हासिल कर सकेंगे और बहुत अधिक आकांक्षाएं जगा सकेंगे जिसकी तत्‍काल आवश्‍यकता है। सरकारों को भी जीवाष्‍म ईंधन के लिए हानिकारक सब्‍सडियां बंद कर देनी चाहिए। कार्बन प्राइसिंग शुरू करनी चाहिए जिससे प्रदूषणकारी ग्रीन हाउस गैस उत्‍सर्जन की असली लागत सामने आए और स्‍वच्‍छ ऊर्जा अपनाने के लिए प्रोत्‍साहन देना चाहिए।

मैंने, हमारे सामने मौजूद आपातस्थिति, कार्रवाई के लाभों और जलवायु अनुकूल परिवर्तन की व्‍यावहारिकता की बात की है। हमारे सामने कार्रवाई करने का एक और कारण है-नैतिक   कर्तव्‍य। जलवायु संकट की सबसे अधिक जिम्‍मेदारी विश्‍व के सबसे अमीर देशों की है फिर भी इसका असर सबसे पहले और सबसे अधिक निर्धनतम देशों और सबसे लाचार निवासियों एवं समुदायों को सहना पड़ रहा है। हमें भीषणतम सूखे और हर बार अधिक ताकतवर तूफानों के मूसलाधार और निरंतर बढ़ते चक्र में यह अन्‍याय साफ दिखाई दे रहा है।

महिलाएं और लड़कियां विशेषकर इसकी कीमत चुकाएंगी- सिर्फ इसलिए नहीं कि उनका जीवन और कठिन हो जाएगा, बल्कि इसलिए भी कि आपदा के समय महिलाओं और लड़कियों को हमेशा बेहिसाब कष्‍ट उठाना पड़ता है।

अत: अमीर देशों को न सिर्फ अपने उत्‍सर्जन कम करने चाहिए, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए और अधिक प्रयास करने चाहिए कि सबसे लाचार समुदायों में इन उत्‍सर्जनों के कारण होने वाली हानि में जीवित रहने के लिए आवश्‍यक शक्ति विकसित हो सके।

यह ध्‍यान देना भी आवश्‍यक है कि कार्बन डाइऑक्‍साइड वातावरण में बहुत लंबे समय तक मौजूद रहती है, इसलिए आज हम जो जलवायु परिवर्तन देख रहे हैं, वह आने वाले कई दशकों के जारी रहेगा। सभी देशों को इसके अनुकूल ढलना होगा और सबसे अमीर देशों को सबसे लाचार समुदायों की मदद करनी ही होगी। इस महीने न्‍यूयॉर्क में महासभा में विश्‍व नेताओं को संबोधित करते समय मैं यह स्‍पष्‍ट संदेश दूंगा।

मैं उन्‍हें बताऊंगा की जलवायु परिवर्तन हमारे दौर की एक बड़ी चुनौती है और विज्ञान की बदौलत हमें उसके आकार और प्रकृति की जानकारी है। हमारे पास उसका सामना करने के लिए आवश्‍यक मेधा संसाधन और साधन मौजूद हैं। अब नेताओं को नेतृत्‍व दिखाना ही होगा।

हमारे पास कार्रवाई करने के लिए नैतिक और आर्थिक प्रोत्‍साहन हैं। किन्‍तु पेरिस समझौते के बावजूद अब भी कमी है- नेतृत्‍व की, गंभीरता को समझने की और एक निर्णायक बहुपक्षीय कार्रवाई के लिए सच्‍चे संकल्‍प की।

पेरिस समझौते को लागू करने के लिए क्रियान्‍वयन दिशा-निर्देशों पर वार्ता कल बैंकॉक में संपन्‍न हुई। इसमें कुछ प्रगति हुई किन्‍तु वह पर्याप्‍त से बहुत कम है। अगला महत्‍वपूर्ण अवसर दिसंबर में पोलैंड में आएगा। मैं नेताओं से आग्रह करता हूं कि वे अब से लेकर तब तक हर अवसर- जी-7, जी-20 सम्‍मेलन, महासभा, विश्‍व बैंक और अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्राकोष की बैठकों- का उपयोग विवादित मुद्दों के समाधान के लिए करें।

हम काटोवाइस में कोपनहेगन की यादें ताजा नहीं होने दे सकते। हमारे नेताओं के लिए अब यह साबित करने का समय आ गया है कि उन्‍हें उस जनता की चिंता है जिसका भाग्‍य उनके हाथों में है। हम चाहते हैं कि वे यह दिखाएं कि उन्‍हें फिक्र है, भविष्‍य की और वर्तमान की भी। इस संदर्भ में आज उपस्थित लोगों में युवाओं का जबरदस्‍त प्रतिनिधित्‍व देखकर मैं बहुत प्रसन्‍न हूं।

यह आवश्‍यक है कि दुनिया भर में प्रबुद्ध समाज- युवा, महिला समूह, निजी क्षेत्र, आस्‍था से जुड़े समुदाय, वैज्ञानिक और जमीनी आंदोलन- अपने नेताओं से जवाबदेही लें। जैसा कि मेरे युवा दूत ने मुझसे कहा मैं विशेष तौर पर महिला नेतृत्‍व का आग्रह करता हूं। महिलाओं को नेतृत्‍व की शक्ति दी जाए तो वे समाधानों की संचालक होती हैं।

हम जलवायु परिवर्तन की चुनौती का समाना करने के लिए जिस तरह खड़े होते हैं उस पर हमारा भविष्‍य और मानव समुदाय का भाग्‍य निर्भर है। इसका असर संयुक्‍त राष्‍ट्र के हर काम के पहलू पर पड़ता है। पृथ्‍वी के तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना विश्‍व की संपन्‍नता जनता के कल्‍याण और राष्‍ट्रों की सुरक्षा के लिए आवश्‍यक है। इसीलिए अगले सितम्‍बर में मैं जलवायु शिखर सम्‍मेलन आयोजित करूंगा ताकि जलवायु कार्रवाई को अंतर्राष्‍ट्रीय एजेंडा में पहला स्‍थान मिल सके।

आज मैं जलवायु समुदाय में एक सम्‍मानित नेता लुइस अल्‍फोंजो दे  अल्‍बा को इन तैयारियों के नेतृत्‍व के लिए अपना विशेष दूत नियुक्‍त करने की घोषणा करता हूं। उनके प्रयास जलवायु कार्रवाई के लिए मेरे विशेष दूत माइकल ब्‍लूमबर्ग और मेरे विशेष सलाहकार बॉब ओर के प्रयासों के पूरक होंगे, जो निजी वित्त जुटाने और नीचे से ऊपर की तरफ कार्रवाई प्रेरित करने में मदद करेंगे।

अगले वर्ष निर्धारित शिखर बैठक उस समय से ठीक एक वर्ष पहले होगी, जब देशों को पेरिस समझौते के तहत अपने राष्‍ट्रीय जलवायु संकल्‍पों में वृद्धि करनी होगी। यह तभी संभव होगा जब आकांक्षाओं का स्‍तर बहुत अधिक ऊंचा उठाया जाएगा। इसके लिए शिखर सम्‍मेलन में उन क्षेत्रों पर ध्‍यान दिया जाएगा जो समस्‍या के मर्म पर चोट करते हैं। ऐसे क्षेत्र जहां सबसे अधिक उत्‍सर्जन होता है और ऐसे क्षेत्र जहां सहन शक्ति निर्मित करने से सबसे अधिक अंतर आएगा।

यह शिखर सम्‍मेलन नेताओं और उनके साझीदारों को वास्‍तविक जलवायु कार्रवाई प्रदर्शित करने और अपनी आकांक्षाएं साबित करने का अवसर प्रदान करेगा।

हम निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में अरबों डॉलर की परिसंपत्तियों वाले समुदाय के प्रतिनिधियों सहित वास्‍तविक अर्थव्‍यवस्‍था और वास्‍तविक राजनीति के नियंताओं को एकजुट करेंगे।

मैं यह सुनना चाहता हूं कि हम कैसे 2020 तक उत्‍सर्जनों में वृद्धि रोकने वाले हैं और उत्‍सर्जनों में इतनी नाटकीय कमी करने वाले हैं कि शताब्‍दी के मध्‍य तक कुल शून्‍य उत्‍सर्जन तक पहुंच जाएं। इसके लिए हमारे शहरों और राज्‍यों को कोयले की बजाय सौर और पवन ऊर्जा अर्थात धुंए की बजाय निर्मल ऊर्जा को अपनाना होगा।

हमारा शानदार मेज़बान शहर न्यूयॉर्क, इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है और बदलाव लाने के लिए अन्य नगरपालिकाओं के साथ मिलकर काम कर रहा है। हमें भवन, परिवहन और उद्योग के क्षेत्रों में ऊर्जा कुशलता और नवीकरणीय ऊर्जा संबंधी टैक्नॉलॉजी में पहले से अधिक निवेश और नवाचार की आवश्यकता है। और यह भी आवश्यक है कि तेल एवं गैस उद्योग अपनी कारोबारी योजनाओं को पेरिस समझौते और पेरिस लक्ष्यों के अनुरूप बनाएं।

मैं कार्बन प्राइसिंग में ज़बर्दस्त विस्तार चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि हम बड़े पैमाने पर जंगल काटे बिना अपने लिए खाद्य सामग्री उगाना सुनिश्चित कर वैश्विक खाद्य प्रणाली को दुरुस्त करें। हमें टिकाऊ खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं की आवश्यकता है जिनसे क्षति औऱ बर्बादी कम हो। और हमें वनों की कटाई रोकनी होगी तथा क्षतिग्रस्त भूमि को फिर उपयोग लायक बनाना होगा।

मैं चाहता हूँ कि बैंको और बीमा कंपनियों द्वारा  पर्यावरण अनुकूल वित्त पोषण की दिशा में रुझान की गति तेज़ी से बढ़ाई जाए और वित्तीय एवं ऋण पत्रकों में नए नए तरीकों को प्रोत्साहन मिले जिससे छोटे द्वीपीय देशों जैसे लाचार देशों की संकटों का सामना करने की शक्ति मज़बूत हो। और मैं देखना चाहता हूँ कि सरकारें विकासशील देशों के समर्थन में  जलवायु कार्रवाई के लिए प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर जुटाने का अपना संकल्प पूरा करें।

हमें देखना होगा कि ग्रीन क्लाइमेट फंड पूरी तरह काम करने लगे और पूरी तरह संसाधन सम्पन्न हो। किंतु इस सब के लिए ज़रूरी है कि सरकारें, उद्योग और प्रबुद्ध समाज एक ही दिशा में काम करें। इसमें सरकारें सबसे आगे और बीच में रहकर जलवायु कार्रवाई का संचालन करें।

मैं, सभी नेताओं से आग्रह कर रहा हूँ कि वे अगले वर्ष जलवायु शिखर सम्मेलन में इस तैयारी के साथ आएं कि न केवल यह बता सकें कि वे क्या कर रहे हैं, बल्कि यह भी बता सकें कि 2020 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के समय तक वे क्या करना चाहते हैं। वहाँ संकल्पों को दोहराने के साथ-साथ उनमें यकीनन बहुत अधिक वृद्धि की जाएगी।

आइए हम अगले वर्ष में दुनियाभर के बोर्ड सभा कक्षों, एग्ज़ीक्यूटिव सूट्स और संसदों में परिवर्तनकारी निर्णय लें। आइए हम अपनी नज़रें उठाएं औऱ अपने नेताओं को सुनने पर बाद्य करें। मैं इस प्रयास के लिए स्वयं को एवं समूचे संयुक्त राष्ट्र तंत्र को समर्पित करता हूँ। हम उन सभी नेताओं का समर्थन करेंगे जो उन चुनौतियों का सामना करने के लिए खड़े होंगे जिनका उल्लेख किया है।

अब व्यर्थ गंवाने के लिए समय नहीं है। इस वर्ष गर्मियों में जंगलों में लगी आग और ग्रीष्म लहर की इतनी भयंकर तीव्रता ने बता दिया कि हमारी आँखों के सामने दुनिया बदल रही है। हम गहरी खाई के कगार की तरफ बढ़ रहे हैं। रास्ता बदलने के लिए अब भी बहुत देर नहीं हुई है। किंतु हर गुज़रते दिन के साथ दुनिया कुछ और गर्म हो रही है और हमारी निष्क्रियता की लागत बढ़ती जा रही है। कार्रवाई करने में हमारी असफलता का एक-एक दिन हमें उस भाग्य की तरफ ले जाता है जिसकी हममें से किसी ने कामना नहीं की है- इस भाग्य की गूँज मानव समुदाय और पृथ्वी पर जीवन को हुई क्षति के रूप में पीढ़ियों तक सुनाई देती रहेंगी ।

हमारा भाग्य हमारे हाथ में है। दुनिया आशाभरी निगाहों से हम सबको देख रही है कि हम चुनौती का डट कर सामना करें, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए। मैं आप सब पर भरोसा करता हूँ।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]

UN entities involved in this initiative

UN
United Nations

Goals we are supporting through this initiative