Press Release

भारत में संयुक्त राष्ट्र धारा 377 पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करता है

06 September 2018

भारत में संयुक्त राष्ट्र ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 पर सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की…

भारत में संयुक्त राष्ट्र ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 पर सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की इस धारा के एक मुख्य हिस्से को रद्द कर दिया है जिसमें वयस्कों के बीच विशिष्ट यौन संबंधों को अपराध घोषित किया गया था। यह एक ब्रिटिशकालीन औपनिवेशिक कानून है जिसमें लेस्बियन, गे, समलैंगिक, ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स (एलजीबीटीआई) व्यक्तियों और समुदायों को निशाना बनाया जाता रहा है।

दुनिया भर में सेक्शुअल ओरिएंटेशन और जेंडर अभिव्यक्ति किसी व्यक्ति की पहचान का अभिन्न अंग हैं और इनके आधार पर हिंसा करना, लांछन लगाना और किसी के साथ भेदभाव करना मानवाधिकारों का दुखद उल्लंघन है। विश्व स्तर पर एलजीबीटीआई लोग लगातार हिंसक हमलों का शिकार बनते आये हैं और उनके साथ आयु, लिंग, जाति, विकलांगता और सामाजिक स्थिति के आधार पर अनेक प्रकार के और परस्पर संबंधित भेदभाव होते आए हैं।

भारत में संयुक्त राष्ट्र निष्ठापूर्वक यह उम्मीद करता है कि सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला, एलजीबीटीआई लोगों को समस्त मूलभूत अधिकारों के आश्वासन की ओर पहला कदम होगा । हम यह भी उम्मीद करते हैं कि इस फैसले से सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में एलजीबीटीआई लोगों के साथ होने वाला भेदभाव खत्म होगा, तथा सच्चे अर्थों में समाज में उनका समावेश होगा। अब इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि न्याय तक उनकी पहुंच बने तथा उनकी तकलीफें दूर हों। हिंसा और भेदभाव की घटनाओं की असरकारक तरीके से जांच हो और उन्हें आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार मिल सकें।

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