Press Release

भारत में आश्रय गृहों में बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र-भारत का साझा वक्तव्य

14 August 2018

नई दिल्ली, 14 अगस्त, 2018 – भारत में संयुक्त राष्ट्र स्थानीय समन्वयक ने आज निम्नलिखित वक्तव्य जारी किया।

भारत में सबसे संवेदनशील और वंचित बच्चों के जीवन में…

नई दिल्ली, 14 अगस्त, 2018 – भारत में संयुक्त राष्ट्र स्थानीय समन्वयक ने आज निम्नलिखित वक्तव्य जारी किया।

भारत में सबसे संवेदनशील और वंचित बच्चों के जीवन में सुधार के लिए संयुक्त राष्ट्र केंद्र सरकार और राज्य सरकारों, नागरिक समाज और संबंधित नागरिकों की प्रतिबद्धता की सराहना करता है।

जिन संस्थाओं पर बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी है, उनके द्वारा ही बच्चों के उत्पीड़न और शोषण की दिल दहला देने वाली घटनाएं हम सबके लिए खतरे की घंटी है। किसी भी बच्चे, चाहे वह लड़का हो या लड़की, के साथ होने वाली हिंसा अत्यंत शर्मनाक और निंदनीय है और इसे किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

हम उन राज्य सरकारों और स्वतंत्र संस्थाओं की सराहना करते हैं जिन्होंने आवासीय देख-रेख, यानी रेसिडेंशियल केयर, में रहने वाले बच्चों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए उचित उपाय किए हैं। बच्चों के अधिकारों के गंभीर उल्लंघन को पहचानना, भले ही वह पीड़ादायक हो, चुप्पी और खंडन की संस्कृति से हमेशा बेहतर होता है। अब यह कोशिश की जानी चाहिए कि उत्पीड़न, अवहेलना और शोषण के शिकार बच्चों के जख्मों को भरा जाए। साथ ही हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों और जिन लोगों पर बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी है, उन्हें जवाबदेह बनाया जाए।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देश में बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का आदेश दिया है, जिससे संयुक्त राष्ट्र अत्यंत उत्साहित है। हम भारत सरकार और संबंधित राज्य सरकारों की सराहना करते हैं कि वे बच्चों के आश्रय गृहों का सामाजिक ऑडिट करवाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

हाल के वर्षों में भारत ने बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ कदम बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। कानून बनाए गए हैं और अनेक मामलों में ठोस कार्रवाई की गई है जिससे सभी का ध्यान इस ओर गया है। हमें उम्मीद है कि हाल की घटनाओं के बाद भारत में बाल संरक्षण सेवाओं में व्यापक सुधार होगा। हम इस बात का भी समर्थन करते हैं कि बच्चों को एक सुरक्षित पारिवारिक और सामुदायिक वातावरण मिलना चाहिए। उन्हें किसी आवासीय देख-रेख में तभी रहना पड़े, जब यह उनके हित में हो।

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