Press Release

"हमें आतंकवाद से मिलकर निपटना होगा", कानूनी और मानव अधिकारों का हनन किए बिना - संयुक्त राष्ट्र महासचिव की घोषणा

24 July 2018

आतंकवाद का सामना करने के बारे में पहले उच्च स्तरीय सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने सदस्य देशों के उपस्थित प्रतिनिधियों से कहा कि नए समाधानों के प्रस्ताव…

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आतंकवाद का सामना करने के बारे में पहले उच्च स्तरीय सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने सदस्य देशों के उपस्थित प्रतिनिधियों से कहा कि नए समाधानों के प्रस्ताव आने, और नई साझेदारियों के स्थापित होने के साथ वे "आपके नागरिकों की सुरक्षित रखने" की चुनौती से निपटने के प्रति वचनबद्ध हैं।

आतंकवाद रोधी सप्ताह के उपलक्ष्य में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित दो दिन के सम्मेलन के अंत में श्री एंटोनियो गुटेरेस ने कहा "हमें मिलकर आतंकवाद से ऐसे तरीकों से निपटना होगा, जिनसे कानून के शासन और मानव अधिकारों का हनन न हो।"

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा कि "हमें उन सबके साथ मिलकर काम करना चाहिए जो लक्ष्य हासिल करने में हमारी मदद कर सकते हैं"। इनमें शिक्षा, नौकरियों और व्यावसायिक प्रशिक्षण के ज़़रिए युवाओं का सशक्त करना और महिलाओं तथा समूचे प्रबुद्ध समाज को आतंकवाद से संघर्ष में साथ लेना शामिल है।

उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के आतंकवाद रोधी कार्यालय में नई इकाई बनाने पर विचार किया जा रहा है जिससे नीतियों और कार्यक्रमों में प्रबुद्ध सामाजिक समूहों के विचार पूरी तरह झलक सकें। दो दिन के इस ऐतिहासिक सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले 1000 से अधिक प्रतिनिधियों में प्रबुद्ध समाज के सदस्य शामिल थे।

उन्होंने कहा कि आतंकवाद का सामना करने के लिए समन्वयकों का वैश्विक नेटवर्क (ग्लोबल नेटवर्क ऑफ काउंटर-टेररिज़्म कॉरडिनेटर्स) बनाने की पहल भी विचाराधीन है जिससे विशेषज्ञता और सर्वोत्तम विधियों को औेर ज्यादा कारगर तरीके से एक-दूसरे के साथ बांटा जा सकेगा।

श्री गुटेरेस ने कहा कि आतंकवाद की रोकथाम भी ज़रूरी है। उन्होंने कहा "आतंकवादी हमारी रक्षा पंक्ति में कमज़ोरियाँ ढूंढने के लिए कमर कसे रहते हैं। आतंकवादियों से आगे रहने के लिए, मैं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, निजी क्षेत्र औेर शिक्षाविदों का आह्वान करता हूं कि वे अपने ज्ञान, विशेषज्ञता और संसाधनों का आदान-प्रदान करें ताकि नई टेक्‍नॉलॉजी से आतंकवादीयों के हाथों द्वारा घातक हथियार बनने से रोका जा सके।"

संयुक्त राष्ट्र के अन्य प्रमुख अधिकारियों ने भी युवाओं की भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ आतंकवादीयों द्वारा नई टैक्नॉलॉजी और इंटरनेट का दुरूपयोग रोकने की बात दोहराई।

विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के प्रशासक एकिम स्टाइनर ने बताया कि विकास "रोकथाम दृष्टिकोण" में किस तरह की भूमिका निभा सकता है ।

उन्होंने कहा "ऐसा बहुत बार होता है कि उग्रवाद के पनपने की परिस्थितियां कुछ हद तक विकास में असफलता और राष्ट्र राज्य की प्रतीक संस्थाओं में कमज़ोरियों से जुड़ी होती है। ऐसी परिस्थितियों में हताशा और कुण्ठा के कारण लोगों, विशेष रूप से युवाओें का अपने देश की संस्थाओं से भरोसा उठ जाता है क्योंकि वे अपना काम नहीं कर पाए।"

"युवा हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा नहीं बल्कि हमारी सबसे बड़ी आशा हैं ।" - संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम प्रमुख एकिम स्टाइनर

श्री स्टाइनर ने कहा कि इसके बावजूद कि युवा भड़काए जाने के लिए अक्सर हिंसक उग्रवादी गुटों के "निशाने" पर रहते हैं, लेकिन अनेक युवा "असाधारण मज़बूती" दिखाते हुए विभिन्न प्रकार के माहौल में हिंसक उग्रवाद से निपट रहे हैं।

उन्होंने कहा कि "हमें उनकी विशिष्ट भूमिका को पहचानना होगा और उनसे सार्थक भागीदार तथा नेता के रूप में काम कराना होगा। हमारे युवा हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा नहीं बल्कि सबसे बड़ी आशा हैं।" उन्होंने कहा कि वैश्विक समुदाय को यह सुनिश्चित करने के लिए "हर संभव प्रयास" करने होंगे कि नई टैक्नॉलॉजी के दुरुपयोग से उनकी क्षमता कमज़ोर न हो क्योंकि युवा नई टैक्नॉलॉजी को सबसे तेज़ी से अपनाते हैं।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम प्रमुख ने सार्वजनिक पारदर्शिता बढ़ाने, सार्थक समावेशन और नीति निर्माण में भागीदारी का दायरा बढ़ाने सहित नई टेक्नॉलॉजी की "अपार क्षमता" का भी उल्लेख किया।

हमें "अपने भविष्य" को निराश नहीं करना चाहिए - संयुक्त राष्ट्र विशेष सलाहकार

जनसंहार रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष सलाहकार एडमा डिएंग ने दुनिया भर में संघर्षों का जिक्र किया जहाँ आतंकवादी और हिंसक उग्रवादी समूहों सहित सरकारी और गैर-सरकारी तत्वों ने भीषण अत्याचारी अपराध किए हैं। उनमें से कुछ गुटों ने हिंसा भड़काने और उसे न्यायसंगत ठहराने के लिए धर्म का दुरुपयोग किया और धार्मिक ग्रंथों की गलत विवेचना की।

हमारे युवा हमारा भविष्य है... हमें उन्हें निराश नहीं करना चाहिए। - संयुक्त राष्ट्र विशेष सलाहकार एडमा डिएंग

उन्होंने आगाह किया कि विशेष रूप से अनेक गुटों ने युवाओं को फुसलाने. उनकी शिकायतों और आशाओं का अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करने तथा उन्हें "हिंसा और आतंक के जाल" में घसीटने की कोशिश की है।

विशेष सलाहकार ने जोर दिया कि हमारे युवा हमारा भविष्य हैं। हमें उन्हें निराश नहीं करना है। उन्होंने अमल करने लायक समाधानों के डिजाइन और विकास में युवाओं को शामिल करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि "आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद से संघर्ष में युवाओं को शामिल करना प्राथमिकता होनी चाहिए।"

श्री डिएंग ने धार्मिक नेताओं का भी आह्वान किया कि वे युवाओं से अधिक बातचीत करें और उनसे संपर्क करें जिन्हे हाशिए पर धकेला गया है तथा जिनके आतंकवादियों द्वारा बेहद आसानी से भर्ती किए जाने की आशंका ज्यादा है । उन्होंने आग्रह किया कि युवाओं के साथ मिलकर हिंसक उग्रवाद को बढ़ावा देने वाली विचारधाराओं को चुनौती दें तथा धार्मिक उग्रवादियों के एकाधिकार वाले मुद्दों का दूसरा पक्ष उजागर कर उनका समाधान करें।

जेंडर के बारे में प्रचलित धारणाओं का आतंकवादियों के विकल्पों में योगदान

संयुक्त राष्ट्र जेंडर समानता और महिला सशक्तिकरण संगठन की कार्यकारी निर्देशक फुमजिले म्लाम्बो नगुका, ने भी सम्मेलन को संबोधित करते हुए आतंकवाद के चारों तरफ के जटिल जेंडर डायनमिक्स को सुलझाने में संगठन के प्रयासों के बारे में जानकारी दी।

"जेंडर के बारे में प्रचलित आम धारणाएं आतंकवादियों के विकल्पों में योगदान करती हैं – यूएन विमैन, कार्यकारी निदेशक फुमजिले म्लाम्बो नगुका"

"जेंडर के बारे में प्रचलित धारणाएं आतंकवादियों के सामने मौजूद विकल्पों में योगदान करती हैं। वे महिलाओं को विशेष तरीके से निशाना बनाते हैं, जहाँ उनका कोई मोल नहीं होता वहाँ उन्हें परिवारों से दूर ले जाते हैं और अपहरण कर लेते हैं।" उन्होंने कहा कि लड़कों और पुरूषों की "मर्दानगी को ललकार कर" हिंसा और उग्रवाद की ओर आकर्षित किया जाता है।

यूएन विमैन प्रमुख ने सावधान भी किया है कि आतंकवा‍दी गुट हमले करने के लिए महिलाओं और लड़कियों का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि उन्हें युवा पुरूषों और लड़कों के बराबर खतरा नहीं माना जाता।

महिलाओं और लड़कियों के बारे में पूर्वाग्रहों और प्रचलित धारणाओं का सहारा आतंकवादी अब उन्हीं "नकारात्मक प्रचलित धाराणाओं" के उपयोग के लिए ले रहे हैं जो समाज में मौजूद हैं और ऐसे जेंडर नियमों को हवा देती हैं जिनमें लड़कियों तथा लड़कों को अलग समझा जाता है।

सुश्री नगुका ने कहा कि दुनिया को "रोकथाम में भागीदारों" और कार्रवाई के रूप में हर उम्र की महिलाओं और लड़कियों की भूमिका पहचाननी होगी।

उन्होंने कहा कि "वे ऐसे उपायों में मदद कर सकती हैं, जो मानव अधिकारों पर आधारित और जैंडर के प्रति संवेदनशील हो...... इससे किसी भी प्रकार के अनचाहे दुष्परिणामों से बचा जा सकता है।''

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