भारत मानव विकास सूचकांक में 130 स्थान पर
17 September 2018
2018 मानव विकास सूचकांक जारी भारत 130 पर पहुंचा
जन कल्‍याण की स्थिति में व्‍यापक असमानताएं मानव विकास की सतत प्रगति पर विपरीत असर डालती हैं।…

2018 मानव विकास सूचकांक जारी भारत 130 पर पहुंचा
जन कल्याण की स्थिति में व्यापक असमानताएं मानव विकास की सतत प्रगति पर विपरीत असर डालती हैं। मानव विकास की दृष्टि से बहुत नीचे स्तर वाले देशों के समूह के निवासियों की तुलना में बहुत ऊंचे स्तर पर मौजूद देशों के निवासी 19 वर्ष अधिक जीते हैं और स्कूल में सात वर्ष अधिक बिताते हैं।
नई दिल्ली, 14 सितंबर, 2018 - मानव विकास सूचकांक के ताजा अनुक्रम के अनुसार, 189 देशों में से भारत एक पायदान ऊपर चढ़कर 130 पर पहुंच गया है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने यह अनुक्रम आज जारी किया। 2017 के लिए भारत का मानव विकास सूचकांक स्तर 0.640 है जिससे उसे मध्यम मानव विकास की श्रेणी में स्थान मिल गया है। 1990 और 2017 के बीच भारत का मानव विकास सूचकांक स्तर 0.427 से बढ़कर 0.640 हो गया जो करीब 50 प्रतिशत की वृद्धि है। मानव विकास सूचकांक में यह वृद्धि लाखों लोगों को गरीबी के दलदल से निकालने की भारत की उल्लेखनीय उपलब्धि का संकेत है।
नार्वे, स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड और जर्मनी इस सूची में सबसे ऊपर हैं, जबकि स्वास्थ्य, शिक्षा और आमदनी के मामले में राष्ट्रीय उपलब्धियों के मानव विकास सूचकांक के स्तर में नाइजेर, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, दक्षिण सूडान, चाड और बुरुंडी के अंक सबसे कम हैं। दक्षिण एशिया में भारत का मानव विकास सूचकांक स्तर क्षेत्र के लिए 0.638 के औसत से ऊपर है। एक समान आबादी वाले देश बांग्लादेश और पाकिस्तान का स्थान क्रमश: 136 और 150वां है।
विश्व भर में देखा जाए तो कुल मिलाकर मानव विकास के स्तर में सुधार के रुझान हैं। मानव विकास की श्रेणियों में अनेक देश आगे बढ़ते जा रहे हैं। जिन 189 देशों में मानव विकास सूचकांक की गणना की जाती है उनमें से 59 आज बहुत ऊंचे मानव विकास समूह में हैं और सिर्फ 38 देश मानव विकास सूचकांक के सबसे निचले समूह में हैं। सिर्फ आठ वर्ष पहले 2010 में यह आंकड़ा क्रमश: 46 और 49 देशों का था।
मानव विकास सूचकांक में सुधार या कमी स्वास्थ्य, शिक्षा और आमदनी में बदलाव से होती है। जन्म के समय जीवन की संभावना विश्व भर में लगभग 7 वर्ष बढ़ी है और स्वास्थ्य में यह उल्लेखनीय सुधार का संकेत है। सब सहारन अफ्रीका और दक्षिण एशिया में यह प्रगति सबसे अधिक हुई है, जहाँ 1990 से लेकर इन दोनों ही क्षेत्रों में करीब 11 वर्षों की वृद्धि देखने को मिली है। 1990 की तुलना में स्कूल आयु के बच्चों के लिए आज 4 वर्ष अधिक स्कूल में रहने की संभावना है।
1990 और 2017 के बीच भारत में भी जन्म के समय जीवन की संभावना करीब 11 वर्ष बढ़ी है तथा स्कूल में बिताए जाने वाले अनुमानित वर्षों में भी और अधिक उल्लेखनीय सफलता मिली है। भारत में 1990 की तुलना में आज स्कूल आयु के बच्चे 4.7 वर्ष अधिक स्कूल में पढ़ने की संभावना है, जबकि भारत के प्रतिव्यक्ति जीएनआई में 1990 और 2017 के बीच 266.6 प्रतिशत की भारी वृद्धि देखने को मिलती है।
देशों के बीच और उनके भीतर विसंगतियां अब भी प्रगति में बाधक
मानव विकास सूचकांक के औसत स्तरों में 1990 से उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह वृद्धि वैश्विक स्तर पर 22 प्रतिशत और सबसे कम विकसित देशों में 51 प्रतिशत हुई है जिससे पता चलता है कि लोगों की औसत आयु बढ़ रही है, वे अधिक शिक्षित हो रहे हैं और ज्यादा आमदनी भी ले रहे हैं। किन्तु विश्व भर में जन कल्याण की स्थिति में भारी अंतर अब भी मौजूद है।
मानव विकास सूचकांक के सबसे ऊंचे स्तर पर मौजूद नार्वे देश में आज जन्म लेने वाले बच्चे के 82 वर्ष की आयु के बाद भी जीवित रहने और लगभग 18 वर्ष स्कूल में पढ़ने की संभावना है। दूसरी तरफ मानव विकास सूचकांक के सबसे निचले स्तर पर मौजूद नाइजेर देश में जन्मे बच्चे के लिए सिर्फ 60 वर्ष की आयु तक जीने और सिर्फ 5 वर्ष स्कूल में बिताने की संभावना है। इस तरह के जबर्दस्त अंतर बार-बार दिखाई देते हैं।
यूएनडीपी के प्रशासक आखिम स्टाइनर ने बताया, ''आज निम्न मानव विकास वाले देश में जन्मे बच्चे का जीवन साठ वर्ष से कुछ अधिक रहने की संभावना है, जबकि बहुत ऊंचे मानव विकास वाले देश में जन्मा बच्चा लगभग 80 वर्ष की आयु तक जीने की उम्मीद कर सकता है। इसी तरह, कम मानव विकास वाले देशों में बच्चे बहुत उच्च मानव विकास देशों में बच्चों की तुलना में सात साल से कम स्कूल में रहने की उम्मीद कर सकते हैं। वैसे तो ये आंकड़े अपने आप में बहुत कठोर तस्वीर दिखाते हैं। किन्तु ये उन लाखों लोगों के जीवन की त्रासदी भी बयान करते हैं जो असमानता और खोए हुए अवसरों की मार सहते हैं, जबकि इन दोनों में से कोई भी अपरिहार्य नहीं हैं।''
मानव विकास सूचकांक के भागों को करीब से देखने पर देशों के भीतर शिक्षा, जीवन की संभावना और आमदनी में परिणामों का असमान वितरण दिखाई देता है। असमानता संयोजित मानव विकास सूचकांक से देशों के भीतर असमानता के स्तरों की तुलना की जा सकती है। यह असमानता जितनी अधिक होगी उस देश का मानव विकास सूचकांक उतना ही नीचे चला जाएगा।
वैसे तो कुछ सबसे अमीर देशों सहित अनेक देशों में उल्लेखनीय असमानताएं मौजूद हैं फिर भी निचले मानव विकास स्तरों वाले देशों में औसतन इसकी मार अधिक पड़ती है। निम्न और मध्यम मानव विकास वाले देश असमानता के कारण अपना मानव विकास स्तर क्रमश: 31 और 25 प्रतिशत गंवा देते हैं, जबकि बहुत ऊंचे मानव विकास वाले देशों में औसत क्षति 11 प्रतिशत है।
यूएनडीपी में मानव विकास रिपोर्ट कार्यालय के निदेशक सलीम जहान के अनुसार, ''वैसे तो यह बात बहुत आशाजनक है कि फासले कम हो रहे हैं, फिर भी जन कल्याण में विसंगतियां अब भी अस्वीकार्य स्तर पर फैली हुई हैं। देशों के बीच और देशों के भीतर हर रूप और आयाम में मौजूद असमानता जनता के लिए विकल्पों और अवसरों को सीमित करती है और प्रगति को अवरुद्ध करती है।''
इसी असमानता के कारण भारत ने 26.8 प्रतिशत मानव विकास स्तर खोया है। यह क्षति दक्षिण एशिया में उसके अधिकतर पड़ोसी देशों की तुलना में अधिक है (इस क्षेत्र के लिए औसत क्षति 26.1 प्रतिशत है)। इससे पुष्टि होती है कि आर्थिक प्रगति के पथ पर बढ़ते हुए भी असमानता भारत के लिए चुनौती है। भारत की सरकार और अनेक राज्य सरकारों ने सामाजिक संरक्षण के अनेक उपायों के माध्यम से यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि आर्थिक विकास के लाभों का व्यापक प्रसार हो और सबसे दूर बैठे व्यक्ति तक यह लाभ पहुंचे।
यूएनडीपी की कंट्री निदेशक फ्रान्सीन पिकअप के अनुसार भारत ने अपना मानव विकास सूचकांक स्तर सुधारने के लिए निरंतर प्रगति की है। उन्होंने बताया, ''भारत सरकार सभी देशवासियों के जीवन का स्तर सुधारने के प्रति संकल्पबद्ध है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, स्वच्छ भारत और मेक इन इंडिया जैसी राष्ट्रीय विकास योजनाओं की सफलता और सबके लिए शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवा सुलभ कराने की पहल यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी कि मानव विकास के स्तर में वृद्धि का रुझान तेज हो। सबके लिए विकास का प्रधानमंत्री का संकल्प तथा किसी को पीछे न छोड़ने का सतत विकास लक्ष्य का सिद्धांत भी हासिल हो सकेगा।''
जीवन के प्रारंभिक वर्षों में लड़के-लड़की के बीच अंतर कम हो रहा है। किन्तु वयस्क होने पर असमानताएं मौजूद हैं
देशों के भीतर असमानता का प्रमुख स्रोत स्त्री और पुरुष के बीच अवसरों, उपलब्धियों, सशक्तिकरण में अंतर है। वैश्विक स्तर पर महिलाओं के लिए औसत मानव विकास सूचकांक पुरुषों की तुलना में 6 प्रतिशत कम है। इसका कारण यह है कि अनेक देशों में महिलाओं की आमदनी और शिक्षा का स्तर कम है।
स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या में उल्लेखनीय प्रगति होने के बावजूद पुरुषों और महिलाओं के जीवन से जुड़े अन्य प्रमुख पहलुओं के बीच भारी अंतर मौजूद है। महिला सशक्तिकरण आज भी खासतौर पर एक चुनौती है।
विश्व भर में श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में कम है -- यानी 49 प्रतिशत बनाम 75 प्रतिशत है। श्रम बाजार में महिलाओं की उपस्थिति के बावजूद उनके लिए बेरोजगारी दरें पुरुषों की तुलना में 24 प्रतिशत अधिक हैं। विश्व भर में पुरुषों की तुलना में महिलाएं बिना वेतन कहीं अधिक घरेलू और सेवा का काम करती हैं।
कुल मिलाकर संसद की सीटों के मामले में महिलाओं की हिस्सेदारी कम है। हालांकि क्षेत्रों के बीच भिन्नता दिखाई देती है। दक्षिण एशिया और अरब देशों में यह क्रमश: 17.5 और 18 प्रतिशत है, जबकि लैटिन अमेरिका, कैरेबियन और ओईसीडी देशों में यह 29 प्रतिशत है। महिलाओं के साथ हिंसा सभी समाजों में होती है और कुछ क्षेत्रों में बाल विवाह एवं किशोर अवस्था में ऊंची प्रसव दर अनेक युवा महिलाओं और लड़कियों के लिए अवसरों को गंवा देती हैं। दक्षिण एशिया में 20 और 24 वर्ष की आयु के बीच की 29 प्रतिशत महिलाओं का विवाह उनके 18वें जन्मदिन से पहले हो गया था।
यह चुनौतियां भारत में भी मौजूद हैं, जहां नीति और कानून के स्तर पर बहुत अधिक प्रगति के बावजूद पुरुषों की तुलना में महिलाएं राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से बहुत कम सशक्त हैं। उदाहरण के लिए केवल 11.6 प्रतिशत संसदीय सीटों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व है और 64 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में सिर्फ 39 प्रतिशत वयस्क महिलाएं कम से कम माध्यमिक स्तर की शिक्षा हासिल कर पाई हैं। श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी 27.2 प्रतिशत और पुरुषों की भागीदारी 78.8 प्रतिशत है। इसके बावजूद बांग्लादेश और पाकिस्तान की तुलना में भारत की स्थिति बेहतर है। लैंगिक असमानता सूचकांक की दृष्टि से 160 देशों में भारत का स्थान 127वां है।
मानव विकास सूचकांक के परे विकास की गुणवत्ता पर दृष्टिपात
शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और जीवन के अनेक प्रमुख पहलुओं की गुणवत्ता के मामले में देशों के बीच जबरदस्त भिन्नता है।
सब सहारन अफ्रीका में औसतन प्रति शिक्षक प्राइमरी स्कूल में 39 विद्यार्थी हैं, जबकि दक्षिण एशिया में प्रति शिक्षक 35 विद्यार्थी हैं। किन्तु ओईसीडी देशों और पूर्व एशिया तथा प्रशांत क्षेत्र में और यूरोप तथा मध्य एशिया में प्राइमरी स्कूल में प्रति शिक्षक औसतन 16-18 विद्यार्थी हैं। ओईसीडी देशों और पूर्व एशिया तथा प्रशांत में प्रत्येक 10,000 लोगों पर औसतन क्रमश: 29 और 28 चिकित्सक हैं, जबकि दक्षिण एशिया में केवल 8 और सब सहारन अफ्रीका में 2 भी नहीं हैं।
श्री जहान ने अंत में कहा, ''दुनिया का अधिकतर ध्यान उन आंकड़ों पर जाता है, जिनसे लोगों के जीवन की दास्तान का सिर्फ एक हिस्सा सामने आता है। उदाहरण के लिए यह बहुत स्पष्ट होता जा रहा है कि सिर्फ इस गिनती से काम नहीं चलेगा कि कितने बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं। हमें यह भी जानना होगा कि वे कुछ सीख रहे हैं या नहीं। संवहनीय और सतत मानव विकास प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए गुणवत्ता पर ध्यान देना आवश्यक है।''
मानव विकास सूचकांक और अन्य मानव विकास संकेतकों से उजागर प्रमुख क्षेत्रीय विकास रुझान :
- दक्षिण एशिया :विकासशील क्षेत्रों में दक्षिण एशिया में मानव विकास सूचकांक की वृद्धि सबसे तेज रही है। 1990 से 45.3 प्रतिशत वृद्धि हुई है। इस अवधि के दौरान जीवन की संभावना 10.8 वर्ष की गति से बढ़ी है और बच्चों के लिए स्कूल में पढ़ने के अनुमानित वर्षों में 21 प्रतिशत वृद्धि हुई है। असमानताओं के कारण मानव विकास सूचकांक में करीब 26 प्रतिशत क्षति हुई है। मानव विकास सूचकांक के मामले में पुरुषों और महिलाओं के बीच सबसे व्यापक 16.3 प्रतिशत का अंतर दक्षिण एशिया में है।
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एचडीआई क्या है: मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) को 1990 में पहली मानव विकास रिपोर्ट में विकास के समग्र मानक के रूप में अपनाया गया था। जिसने राष्ट्रीय प्रगति के विशुद्ध आर्थिक आकलन को चुनौती दी। इसमें 189 देश और क्षेत्र शामिल हैं। मार्शल आइलैंड को पहली बार शामिल किया गया है। कोरिया लोकतांत्रिक जनवादी गणराज्य, मुनाको, नाउरू, सान मारिनो, सामोलिया और टुवालू के लिए मानव विकास सूचकांक की गणना नहीं की जा सकी। सांख्यकीय उन्नयन की तालिका 1 में प्रस्तुत मानव विकास सूचकांक स्तरों और रैंकिंग की गणना स्वास्थ्य, शिक्षा और आमदनी के लिए नवीनतम अंतर्राष्ट्रीय तुलनात्मक आंकड़ों से की गई है। पिछले मानव विकास सूचकांक स्तरों और रैंकिंग की गणना पिछली तारीख से उन्हीं उन्नत आंकड़ों और वर्तमान विधियों से दोबारा की गई है जिन्हें सांख्यकीय उन्नयन की तालिका 2 में दिखाया गया है। 2018 सांख्यकीय उन्नयन में प्रस्तुत मानव विकास सूचकांक रैंकिंग और स्तरों की तुलना इसीलिए पिछली मानव विकास रिपोर्ट में प्रकाशित मानव विकास सूचकांक रैंकिंग और स्तरों से सीधे नहीं की जा सकती।
ह्यूमन डेवलेपमेंट इनडासिस एंड इंडिकेटर : 2018 स्टैस्टिकल अपडेट
http://hdr.undp.org/en/2018-update
संयुक्त राष्ट्र की सभी आधिकारिक भाषाओं में पूर्ण प्रेस पैकेज के लिए देखें
http://hdr.undp.org/en/content/2018-human-development-indicators-media-package
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